सिंधु घाटी सभ्यता : प्रारंभ से अंत तक का सफर

                   सिंधु घाटी सभ्यता

 चलिए दोस्तो चलते है एक अनोखे और रोचक सफर पर जिसमे हम ऐसे शहरो के बारे में पड़ेंगे जो अपने समय के सबसे आधुनिक शहर हुआ करते थे साथ ही उनके प्रारंभ से लेकर अंत तक का सफर केसा रहा ये भी जानेंगे।


                #.1क्या है सिंधु घाटी सभ्यता ?

सिंधु घाटी सभ्यता विश्व कि प्राचीनतम महान संस्कृतियो में से एक है। यह सभ्यता विश्व कि सबसे उन्नत और विस्तृत सभ्यता थी , जो कि भारतीय उप महाद्वीप पर आर्यों के आगमन से पहले एक विकसित समाज का निर्माण कर चुकी थी। जिनके नगर विश्व के सबसे उत्कृष्ट रचनाबद्ध तरीके से बनाए गए थे।
हड़प्पा सभ्यता कालिन नगर 

 
                        

     #2. सिंधु घाटी सभ्यता कि खोज कैसे हुई ?

ब्रिटिश सेना में चार्ल्स मेसन नाम के एक सैनिक थे, उन्हें प्राचीन वस्तुएं और सिक्के खोजने का शोक था एक बार उन्हें पंजाब में घूमने के दौरान कई पुराने सिक्के मिले। आगे चलने पर वे हड़पा स्थल पर पहुंचे यहां उन्हे एक पुराने शहर के प्रमाण दिखे , मेसन ने इन अवशेषों अपनी पुस्तक में लिख दिया और इंग्लैंड चले गए । इंग्लैंड जाने के बाद मेसन ने एक किताब लिखी जिसमे उन्होंने हड़प्पा में मिले प्राचीन शहरो के प्रमाण का भी उल्लेख किया।

      #3. सिंधु घाटी सभ्यता का खुदाई कार्य

 
हडप्पा में खुदाई कार्य: - दयाराम साहनी जी के नेतृत्व में सन 1921 में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल हड़प्पा की खुदाई की गई , जिसमे एक अति प्राचीन और विशाल शहर हड़प्पा में कई पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए। हड़प्पा शहर वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगुमरी जिले के रावी नदी के स्थान पर स्थित है। 

 मोहनजोदड़ो में खुदाई कार्य: - इसके बाद सन् 1922 में राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो नामक शहर कि खुदाई का कार्य किया गया। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा एक दुसरे के प्रतिरूप शहर माने जाते है, क्यों कि दोनो हि स्थलों से प्राप्त अवशेषों में काफी समानता मिलती है। मोहनजोदड़ो वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में स्थित है।।


          #4. सिंधु घाटी सभ्यता का समय काल 

विद्वानों के मत के अनुसर सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) के काल को 3 भागों में विभाजित किया गया है।

 क. प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति (प्राक हड़प्पा संस्कृति)
3200 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व तक

ख. हड़प्पा संस्कृति (परिपक्व हड़प्पा संस्कृति)
2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक

ग. उत्तर वर्ती हड़प्पा संस्कृति (परिवर्ती हड़प्पा संस्कृति)
1900 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक ।

           #5.हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल

•हड़प्पा : - हड़प्पा कि खुदाई 1921 में दयाराम साहनी द्वारा कि गई। हड़प्पा शहर पाकिस्तान प्रांत के मोंटगुमारी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। 

हत्वपूर्ण खोज : बलुआ पत्थर कि मूर्ति

                          अन्नागार, बैल गाड़ी

•मोहनजोदड़ो : मोहनजोदड़ो कि खुदाई 1922 में राखल दास बनर्जी द्वारा कि गई। मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है। 
महत्वपूर्ण खोज : विशाल स्नानागर
                         अन्नागार
                         कांस्य की नर्तकी की मूर्ति
                         पशुपति महादेव की मुहर
                        दाड़ी वाले मनुष्य की पत्थर की मूर्ति
                        बुने हुए कपडे

•चन्हुदड़ो : खोज सन् 1931 में
                 खोजकर्ता : एम. गोपाल.मजूमदार 
               स्थान : सिंधु नदी के तट पर स्थित है।
महत्वपूर्ण खोज : मनके बनाने की दुकानें
                          बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पदचिन्ह

• कालीबंगन : खोज सन् 1953
                        खोजकर्ता : बीबी लाल , बी के थापड़
                        स्थान : राजस्थान में धग्गर नदी के तट पर
महत्वपूर्ण खोज : अग्नि वेदिकाएँ
                          ऊंट की हड्डियाँ
                          लकड़ी का हल


• लोथल : खोज सन् 1953
                     खोजकर्ता : रंगनाथ राव
                      स्थान : गुजरात में भोगवा नदी किनारे
महत्वपूर्ण खोज : मानव निर्मित बंदरगाह
                         गोदीवाडा
                         चावल की भूसी
                        अग्नि वेदिकाएं
                        शतरंज का खेल

•बनावली : खोज सन् 1974
                  खोजकर्ता : रविन्द्र सिंह विष्ट
                 स्थान : हरियाणा के हिसार जिले में
महत्वपूर्ण खोज : मनके
                      कुआ 
                     हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा संस्कृतियों के साक्ष्य
                     मिट्टी के बर्तन
                    पत्थर से निर्मित एक विशाल दुर्ग

•धौलावीरा : खोज सन् 1985
                      खोजकर्ता : रंगनाथ विष्ट
                        स्थान : गुजरात के कच्छ के रण क्षेत्र में
महत्वपूर्ण खोज : जल निकासी प्रबंधन
                           जल कुंड

8. रंगपुर : खोज सन् 1953- 54 
                 खोजकर्ता : रंगनाथ राव
                स्थान : गुजरात में भादवा नदी के समीप
महत्वपूर्ण खोज : कच्ची ईट के दुर्ग
                           नालिया
                           मृदभांड
                           बांट
                          पत्थर के फलक 




       #6. हड़प्पा कालीन नगर नियोजन 

                               भवन निर्माण 

इन नगरों के चारो ओर मजबूत दीवार बनाई जाती थी , पुरा शहर दो खण्डों में बंटा था। ऊपरी भाग और निचला भाग , ऊपरी भाग में शायद बड़े जमीदार आदि रहते होंगे एवम निचले भाग में आम लोग रहते होंगे। हड़प्पा सभ्यता छोटे , बड़े , कच्चे , पक्के सभी प्रकार के भवन के अवशेष मिले हैं। इस सभ्यता के लोग भवन निर्माण के कार्य में पारंगत थे , इनकी यह कला इनके भवन में दिखाई देती है। 

                                सड़क निर्माण

हड़प्पा कालीन शहर में सुव्यवस्थित सड़के थी , जो ग्रिड पद्धति के आधार पर बनी हुई थी । घरों के सामने छोटी छोटी सड़के बनी हुई थीं जो मुख्य सड़क से जुडी होती थी। ये सड़के एक दूसरे को समकोण पर कटती थी, जिससे नगर अनेक खंडों में बंट जाता था। मोहनजोदड़ो में सड़के 9.15 मीटर चौड़ी पाई गई है। शहर में एक मुख्य सड़क होती थीं जो एक नगर से दूसरे नगर को जोड़ती थी। 

             

                           जल निकास कि व्यवस्था

हड़प्पा कालीन शहर में स्वच्छता पर काफी ध्यान दिया जाता था। सभी घरों में शौचालय कि व्यवस्था होती थी , शौचालय कि नालियों से निकलने वाला जल घर कि नालियों के जरिए सीधे सड़को कि नालियों मे चला जता था। ये नालिया पक्की इंटो से बनी होती है , जो उपर से ढकी होती थी, आगे चलकर ये नालिया एक बड़े नाले में मिल जाति थी । इस प्रकार सिंधु घाटी सभ्यता के लोगो की सफाई व्यवस्था उच्च कोटि कि थी।

                               अन्न भण्डार व्यवस्था

हड़प्पा संस्कृति के नगरों से प्राप्त अवशेषों me देखा गया है कि किलो के राजमार्ग में दोनो और 6-6 कि पंक्ति में अन्न भण्डार कि व्यवस्था थी। ये अन्न भण्डार 18 मीटर लंबे और 7 मीटर चौड़े हुआ करते थे।

        #7. मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार 

मोहनजोदड़ो के स्थल से प्राप्त अवशेषों में एक विशाल स्नानागार के भी प्रमाण मिले हैं। जिसे ग्रेटबाथ के नाम से भी जाना जाता है, यहां के डीवीनीटी स्ट्रीट गली में यह स्नानगर है।
जिसकी लंबाई लगभग 40 फुट और चौड़ाई 25 फुट है , जो 7 फुट गहरा है। स्नानागर के आस पास कई कमरे बने है। इस स्थल में 8  स्नानागार है लेकिन किसी के भी द्वार एक दूसरे के सामने नहीं खुलते है। 
                        स्नानागार के समीप कुआ मिला है जिसके द्वारा इन स्नानागार के कुंड में जल आता होगा। यहां से जल निकासी के लिए भी नालियों का निर्माण किया गया था, जो पक्की ईंटो से बनी हुईं और ऊपर से ढकी होती थी। इस प्रकार सिंधु घाटी सभ्यता के सभी स्थल में जल निकासी के लिए उत्तम व्यवस्था थी। 
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार 



#8.हड़प्पा सभ्यता के लोगो का सामाजिक जीवन कैसा था ?

हड़प्पा जैसी विकसित सभ्यता एक मजबतू कृषि ढांचे पर ही पनप सकती थी । हड़प्पा के किसान नगर की दीवारों के समीप नदी के पास मैदानों में रहते थे । यह शिल्पकारों, व्यापारियों और अन्य शहर में रहने वालों के लिए अतिरिक्त अन्न पैदा करते थे । कृषि के अलावा ये लोग बहुत सी अन्य कलाओं में भी विशेष रूप से निपुण थे । घरों के आकारों में भिन्नता को देखते हुए कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पा समाज वर्गो में बंटा था ।

 हड़प्पा संस्कृति के लागे भोजन के रूप में गेहॅूं, चावल, तिल, मटर आदि का उपयोग करते थे । लोग मांसाहारी भी थे । विभिन्न जानवरों का शिकार कर रखते थे । फलो का प्रयोग भी करते थे । खुदाई से बहुत सारे ऐसे बर्तन मिले है, जिनसे आकार एवं प्रकार से खाद्य व पेय सामग्रियों की विविधता का पता लगता है । पीसने के लिये चक्की का प्रयोग करते थे । लोग मनोरजं न के लिये विविध कलाओं का प्रयोग करते थे जानवरों की दौड़ शतरंज खेलते थे, नृत्यगंना की मूर्ति हमें हड़प्पा संस्कृति में नाच गाने के प्रचलन को बताती है । यहां से मिट्टी के पासे के निसान मिले हैं।

इस काल में भी शवों के जमीन में दफनाया जाता था । मृतकों की कब्रों के ऊपर बड़े-बड़े पत्थर भी रख दिये जाते थे, जिनको रखने का मुख्य उद्देश्य मृतकों को सम्मान देना था । कुछ स्थलों पर शवो को जलाने की प्रथा का भी प्रचलन हो गया था । जब शव जल जाता था तो उसकी राख को मिट्टी के बने घड़ों में रखकर सम्मान के साथ जमीन में गाड़ दिया जाता था।  

 #9. हड़प्पा सभ्यता के लोगो का आर्थिक जीवन कैसा था ?

सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म की गेँहू पैदा करते थे। बनावली में मिला जौ उन्नत किस्म का है। इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे। हड़प्पा योंतो एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहां के लोग पशुपालन भी करते थे। बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पाला जाता था। हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था।यहां के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे । ये चक्के से परिचित थे और संभवतः आजकल के इक्के (रथ) जैसा कोई वाहन प्रयोग करते थे। 
               ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से व्यापार करते थे। उन्होंने उत्तरी अफ़गानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें व्यापार में सहूलियत होती थी। बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बंध था। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापार के प्रमाण मिले हैं साथ ही दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का भी उल्लेख मिलता है - दलमुन और माकन। दिलमुन की पहचान शायद फ़ारस की खाड़ी के बहरीन के की जा सकती है। यहाँ के नगरों में अनेक व्यवसाय-धन्धे प्रचलित थे। 
          मिट्टी के बर्तन बनाने में ये लोग बहुत कुशल थे। मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे। कपड़ा बनाने का व्यवसाय उन्नत अवस्था में था। उसका विदेशों में भी निर्यात होता था। जौहरी का काम भी उन्नत अवस्था में था। मनके और ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था,अभी तक लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली है। अतः सिद्ध होता है कि इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था।
हड़प्पा स्थल से प्राप्त मानव मूर्ती 


 #10. हडप्पाई लोगो का धार्मिक जीवन कैसा था ? 

इस सभ्यता के लोग मूर्ति पूजा में विश्वास रखते थे , मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर में भगवन शिव के रूप का चित्रण दिखाई देता हैं। इस सभ्यता में लिंग आकृति भी प्राप्त हुई है , जो उस समय भी मूर्ति पूजा के प्रमाण देते हैं। इस सभ्यता में मूर्ति पूजा , सूर्य पूजा , नाग पूजा और वृक्ष पूजा के भी प्रमाण दिखे है। 

  #11. सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के क्या कारण थे ?

कई वर्षो तक अपने जीवन का उत्कृष्ट प्रदर्शन देने हड़प्पा सभ्यता अचानक केसे लुप्त हो गई इस पार विद्वानों के अपने अपने तर्क है।

*संभवतः यह एक प्रबल भूकंप आया होगा जिसके कारण इस सभ्यता का अंत हो गया होगा ।

*सूखा और अकाल पड़ने के कारण लोगो ने इस स्थान को छोड़ दिया और यह विरान हो गया होगा ।

*विदेशी आक्रमण होने के कारण थे सभ्यता का अंत हो गया होगा ।

*सिंधु नदी मे बाड़ आई होगी जिस कारण इस सभ्यता का अंत हुआ होगा।

*इसके अलावा एक कारण यह भी बताया जाता हैं की यह सभ्यता एकाएक लुप्त नहीं हुईं होगी बल्कि यहां के लोग धीरे धीरे पूर्व कि और बढ़ते गए क्योंकि यहां कि नदियों के मैदान खेती के उपयुक्त थे।

दोस्तों यहां कुछ कारण बताए गए हैं जिसके कारण इस सभ्यता का अंत हुआ होगा लेकिन किसी भी कारण पर पूर्ण रूप से विश्वास नहीं किया जा सकता हैं। 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ?

1.सिंधु घाटी सभ्यता किसे कहते हैं ?

उत्तर :- सिंधु नदी के तट पर इस सभ्यता के विकास होने के कारण इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहते है।

2.हडप्पा सभ्यता कहा पर है ?

उत्तर : - यह सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगुमारी जिले में रावी नदी तट पर स्थित है।

 3.सिंधु घाटी सभ्यता का समय क्या है ?

उत्तर : - 3200 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक।

4.हड़प्पा सभ्यता कि खुदाई कब हुईं ?

उत्तर :- सन् 1921 में दयाराम साहनी द्वारा।

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